रामचरितमानस की प्रेरणादायक चौपाई: ‘कौन सो काज कठिन जग माहीं, जो नहिं होइ तात तुम्ह पाहीं’ ने अवनी को दिलाया पैरालंपिक में गोल्ड मेडल

Joseph L. Crain
Joseph L. Crain

अवनी लेखरा: अदम्य साहस की मिसाल

भारत की अवनी लेखरा ने महिलाओं की 10 मीटर एयर राइफल प्रतियोगिता में गोल्ड मेडल जीतकर देश का नाम रोशन किया है। उन्होंने अंतिम राउंड में 249.7 का स्कोर करके यह अद्वितीय उपलब्धि हासिल की, जो पैरालंपिक का नया रिकॉर्ड भी है। इसके साथ ही, भारत की मोना अग्रवाल ने भी इस प्रतियोगिता में ब्रॉन्ज मेडल जीता।

Table of Contents
अवनी लेखरा: अदम्य साहस की मिसालरामचरितमानस की चौपाई बनी अवनी की प्रेरणाचुनौतियों के बावजूद अवनी की अद्वितीय यात्राएक दुर्घटना से शुरू हुई चुनौतियों की कहानीअवनी का शूटर बनने का सफरविश्व रिकॉर्ड और पैरालंपिक कोटाअक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)रामचरितमानस की कौन सी चौपाई ने अवनी लेखरा को प्रेरित किया?अवनी लेखरा ने कौन से इवेंट में गोल्ड मेडल जीता?अवनी लेखरा ने इस प्रतियोगिता में कितना स्कोर किया?क्या अवनी लेखरा के अलावा कोई और भारतीय ने भी इस प्रतियोगिता में मेडल जीता?अवनी के पिता ने रामचरितमानस की चौपाई के बारे में क्या कहा?अवनी लेखरा को गोल्ड मेडल जीतने के लिए किन चुनौतियों का सामना करना पड़ा?निष्कर्ष

रामचरितमानस की चौपाई बनी अवनी की प्रेरणा

अवनी के पिता, प्रवीण लेखरा ने इस सफलता के पीछे रामचरितमानस की एक चौपाई का उल्लेख किया, जिसे उन्होंने अपनी बेटी को दिया था। वह चौपाई है- ‘कवन सो काज कठिन जग माहीं। जो नहिं होइ तात तुम्ह पाहीं।’ प्रवीण लेखरा का कहना है कि इस चौपाई ने अवनी को वह ताकत और प्रेरणा दी, जिससे उन्होंने यह ऐतिहासिक जीत हासिल की।

चुनौतियों के बावजूद अवनी की अद्वितीय यात्रा

22 वर्षीय अवनी लेखरा के लिए यह सफर आसान नहीं था। पेरिस पैरालंपिक से सिर्फ पाँच महीने पहले उन्हें पथरी निकालने के लिए ऑपरेशन करवाना पड़ा, जिससे उनकी ट्रेनिंग भी प्रभावित हुई थी। इसके बावजूद, उन्होंने न केवल इस चुनौती का सामना किया, बल्कि पैरालंपिक में अपने खाते में तीसरा पदक भी जोड़ लिया। इससे पहले, उन्होंने टोक्यो पैरालंपिक में भी स्वर्ण और कांस्य पदक जीते थे, जहाँ वह एक ही पैरालंपिक में कई पदक जीतने वाली दूसरी भारतीय बनी थीं।

एक दुर्घटना से शुरू हुई चुनौतियों की कहानी

अवनी की चुनौतियों की कहानी 2011 में एक कार दुर्घटना से शुरू हुई, जब उनकी रीढ़ में चोट लगने के कारण उनके कमर के नीचे का हिस्सा पैरालाइज हो गया। उस समय अवनी की उम्र मात्र 11 साल थी। दुर्घटना के बाद, उन्हें 90 दिन तक जयपुर और दिल्ली के इंडियन स्पाइनल इंजरी सेंटर में रहना पड़ा। इस दौरान, अवनी ने टीवी पर डांस देखकर और किताबें पढ़कर अपना मनोबल बनाए रखा।

अवनी का शूटर बनने का सफर

दुर्घटना के तीन साल बाद, अवनी ने जयपुर के जगतपुरा शूटिंग रेंज में अपनी शूटिंग की शुरुआत की। 2016 में, उन्होंने किराए की एयर राइफल के साथ कोच शेखर से प्रशिक्षण लेना शुरू किया। मांसपेशियों की कमजोरी के बावजूद, उन्होंने एक साल के भीतर रजत पदक जीतकर अपनी काबिलियत साबित की।

विश्व रिकॉर्ड और पैरालंपिक कोटा

अवनी ने साल 2022 में पेरिस में पैरा विश्व कप के दौरान फाइनल में 250.6 के नए विश्व रिकॉर्ड स्कोर के साथ भारत के लिए पहला पैरालंपिक कोटा हासिल किया। इसके साथ ही, उन्होंने पिछले साल दिल्ली में पैरा शूटिंग विश्व कप में कांस्य पदक भी जीता था। हालाँकि, उन्हें इस दौरान लगातार दर्द की समस्या से जूझना पड़ा।

अवनी लेखरा की कहानी न केवल उनके साहस और संकल्प की मिसाल है, बल्कि यह उन सभी के लिए प्रेरणा भी है जो जीवन में चुनौतियों का सामना कर रहे हैं।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)

रामचरितमानस की कौन सी चौपाई ने अवनी लेखरा को प्रेरित किया?

रामचरितमानस की चौपाई ‘कवन सो काज कठिन जग माहीं। जो नहिं होइ तात तुम्ह पाहीं।’ ने अवनी लेखरा को प्रेरित किया और उन्हें आत्मविश्वास दिया।

अवनी लेखरा ने कौन से इवेंट में गोल्ड मेडल जीता?

अवनी लेखरा ने महिलाओं की 10 मीटर एयर राइफल प्रतियोगिता में गोल्ड मेडल जीता है।

अवनी लेखरा ने इस प्रतियोगिता में कितना स्कोर किया?

अवनी ने इस प्रतियोगिता के अंतिम राउंड में 249.7 का स्कोर किया, जो पैरालंपिक का नया रिकॉर्ड है।

क्या अवनी लेखरा के अलावा कोई और भारतीय ने भी इस प्रतियोगिता में मेडल जीता?

हाँ, भारत की मोना अग्रवाल ने इस प्रतियोगिता में ब्रॉन्ज मेडल जीता।

अवनी के पिता ने रामचरितमानस की चौपाई के बारे में क्या कहा?

अवनी के पिता, प्रवीण लेखरा ने कहा कि उन्होंने रामचरितमानस की इस चौपाई को अवनी को प्रेरणा देने के लिए दिया था, जिससे उसे शक्ति मिली और उसने गोल्ड मेडल जीता।

अवनी लेखरा को गोल्ड मेडल जीतने के लिए किन चुनौतियों का सामना करना पड़ा?

गोल्ड मेडल जीतने से पहले अवनी को पथरी निकालने के लिए ऑपरेशन करवाना पड़ा, जिससे उनकी ट्रेनिंग प्रभावित हुई थी। इसके अलावा, 2011 में एक कार दुर्घटना में उनकी रीढ़ की हड्डी में चोट लग गई थी, जिससे उनका कमर के नीचे का हिस्सा पैरालाइज हो गया था।

निष्कर्ष

अवनी लेखरा की प्रेरणादायक यात्रा हमें यह सिखाती है कि जीवन में कितनी भी कठिनाइयाँ क्यों न हों, दृढ़ संकल्प, आत्मविश्वास और सही मार्गदर्शन के साथ उन्हें पार किया जा सकता है। रामचरितमानस की चौपाई ने अवनी को वह शक्ति और प्रेरणा दी, जिससे उन्होंने न केवल अपने सपनों को साकार किया,

बल्कि देश का नाम भी गर्व से ऊँचा किया। उनकी कहानी उन सभी के लिए एक प्रेरणा है जो अपने जीवन में चुनौतियों का सामना कर रहे हैं, यह साबित करती है कि हर कठिनाई को पार किया जा सकता है, बशर्ते हमारे पास उसे पाने का दृढ़ निश्चय हो।

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