राहुल गांधी: ‘महाभारत’ राही मासूम रजा की स्क्रिप्ट नहीं है, एकलव्य शोषित नहीं था – जानिए कैसे बिछा दी गईं यादवों की लाशें

Joseph L. Crain
Joseph L. Crain

लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी वर्तमान में अमेरिका के दौरे पर हैं। विदेश यात्राओं के दौरान उनका भारत की छवि को धूमिल करने का सिलसिला जारी रहता है। कभी वह देश मेंमहाभारत केरोसिन तेल और चिंगारी की तुलना करते हैं, तो कभी मुस्लिमों, दलितों और जनजातीय समाज पर हमलों की बात करते हैं। अब एक बार फिर से, उन्होंने भारत और हिंदू धर्म को बदनाम करने के लिए इतिहास की एक घटना को गलत तरीके से प्रस्तुत किया है।

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एकलव्य की प्रचलित कहानी के जरिए कॉन्ग्रेसी प्रपंचजब एकलव्य की वीरता देख दंग रह गए पांडव और द्रोणाचार्यद्रोणाचार्य जहाँ का रोटी खाते थे, उस राज्य के प्रति निभाई वफादारीयदुवंशियों का हत्यारा थे एकलव्य, जरासंध का अनुचरअपने बेटे तक को द्रोणाचार्य ने नहीं सिखाया ब्रह्मास्त्रअक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)राहुल गांधी ने ‘महाभारत’ के संदर्भ में क्या कहा?एकलव्य की कहानी में क्या सच्चाई है?यादवों की लाशें बिछाने की बात किस संदर्भ में है?क्या राहुल गांधी की टिप्पणियाँ भारतीय इतिहास की सच्चाई को विकृत करती हैं?क्या ‘महाभारत’ की कथा में द्रोणाचार्य का निर्णय जातिवाद पर आधारित था?क्या एकलव्य के बारे में अधिक जानकारी के लिए क्या अध्ययन किया जाना चाहिए?निष्कर्ष

राहुल गांधी ने ऑस्टिन स्थित ‘यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्सास’ में छात्रों से संवाद करते हुए भारत और हिंदू धर्म के प्रति नकारात्मक भावनाएं प्रकट की। 8 सितंबर, 2024 को, कांग्रेस पार्टी के पूर्व अध्यक्ष डलास पहुंचे, जहां ओवरसीज कांग्रेस के अध्यक्ष सैम पित्रोदा भी उनके साथ थे। छात्रों से बातचीत के दौरान, राहुल गांधी ने पूछा कि क्या उन्होंने एकलव्य की कहानी सुनी है। उन्होंने कहा कि यदि आप भारत में वर्तमान स्थिति को समझना चाहते हैं, तो जान लीजिए कि रोजाना लाखों एकलव्य की कहानियाँ चल रही हैं।

राहुल गांधी ने यह भी कहा कि जिन लोगों के पास कौशल है, उन्हें आगे बढ़ने का मौका नहीं दिया जा रहा है। उनका कहना था कि केवल 1-2% लोगों को समर्थ बना कर भारत को शक्तिशाली नहीं बनाया जा सकता। स्किल डेवलपमेंट पर बात करते हुए उन्होंने एक अजीब उदाहरण दिया जो समझ से परे था। दरअसल, राहुल गांधी अक्सर एकलव्य की कहानी का उपयोग कर दलितों और जनजातीय समाज को भड़काने का प्रयास करते हैं। आइए, जानते हैं कि एकलव्य की कहानी क्या थी।

एकलव्य की प्रचलित कहानी के जरिए कॉन्ग्रेसी प्रपंच

अक्सर एकलव्य से जुड़ी घटना को व्यापक परिप्रेक्ष्य में नहीं देखा जाता। लोग अक्सर सिर्फ टीवी सीरियलों में दिखाए गए दृश्यों पर आधारित हो जाते हैं, बिना मूल स्रोतों तक पहुंचने की कोशिश किए या उस समय की परिस्थितियों और राजनीति को समझे बिना। यह वह समय था जब हस्तिनापुर पूरे भारत पर अपनी सत्ता स्थापित करने में व्यस्त था और आंतरिक कलह से गुजर रहा था। इसी समय श्रीकृष्ण को मथुरा पर हो रहे बाहरी हमलों से बचाना भी एक प्रमुख चुनौती थी।

अब संक्षेप में जान लेते हैं कि एकलव्य की कहानी क्या है। कहा जाता है कि एक बार द्रोणाचार्य अर्जुन और अन्य शिष्यों के साथ जंगल में जा रहे थे, तभी एक कुत्ता भौंकते हुए आया। एक लड़के ने अचानक कुत्ते के मुंह में कई तीर छोड़े, जिससे वह चुप हो गया, लेकिन मरा नहीं। द्रोणाचार्य ने देखा कि यह लड़का एकलव्य है, जो धनुर्विद्या का अभ्यास कर रहा था। एकलव्य ने गुरु द्रोण की मूर्ति बनाकर उन्हें अपना शिक्षक मान लिया था।

द्रोणाचार्य ने उससे बातचीत की और अंत में गुरु-दक्षिणा की मांग की। द्रोणाचार्य ने अर्जुन को आशीर्वाद दिया था कि इस पृथ्वी पर उससे बड़ा धनुर्धर कोई नहीं होगा। उन्हें चिंता थी कि एकलव्य कहीं अर्जुन से भी बड़ा न हो जाए, इसलिए उन्होंने एकलव्य का अंगूठा मांग लिया। इसके बाद, एकलव्य उतना अच्छा धनुर्धर नहीं रहा। इस कहानी को ‘ब्राह्मणवाद’ और एकलव्य के जनजातीय समाज से घृणा के रूप में प्रस्तुत किया गया है। क्या सच में ऐसा ही था? आइए, इस पर गहराई से विचार करते हैं।

जब एकलव्य की वीरता देख दंग रह गए पांडव और द्रोणाचार्य

महाभारत में एकलव्य की कथा को व्यापक दृष्टिकोण से समझना आवश्यक है। अधिकतर लोग केवल सीरियलों में दिखाए गए संस्करणों तक ही सीमित रहते हैं, लेकिन यह कथा कहीं अधिक जटिल और संदर्भित है। यह वह समय था जब हस्तिनापुर भारत के बड़े हिस्से पर अपने प्रभुत्व को स्थापित करने में लगा हुआ था और स्वयं हस्तिनापुर साम्राज्य में आंतरिक संघर्षों की पटकथा लिखी जा रही थी। इसी समय श्रीकृष्ण को मथुरा पर लगातार हो रहे बाहरी हमलों से बचाने की भी एक महत्वपूर्ण चुनौती थी।

महाभारत के मूल पाठ में एकलव्य की कथा कुछ इस प्रकार है: अर्जुन बचपन से ही एक महान धनुर्धर के रूप में उभर चुके थे। एक बार द्रोणाचार्य ने अपने शिष्यों को आदेश दिया था कि अंधेरे में अर्जुन को भोजन न परोसा जाए, क्योंकि वह इतने कुशल थे कि अंधेरे में भी अपने हाथ से थाली को मुंह तक पहुंचा सकते थे। इसी तरह, प्रसिद्ध हॉकी खिलाड़ी मेजर ध्यानचंद भी चांदनी रात में अभ्यास करते थे, जो उनके नाम में ‘चाँद’ और ‘चंद’ के जोड़ का कारण था।

एकलव्य भी एक दक्ष धनुर्धर था, जिसने धनुर्विद्या के अभ्यास के लिए जंगल में द्रोणाचार्य की मूर्ति स्थापित कर रखी थी। वह द्रोणाचार्य के प्रति गहरी श्रद्धा रखता था और एकाग्रता से अभ्यास करता था। इसी बीच, कौरव और पांडव वन में विचरण कर रहे थे। एक व्यक्ति अपने कुत्ते के साथ उनके पास आया। कुत्ता देखकर एकलव्य ने उसे चुप कराने के लिए सात तीर चलाए, जिससे कुत्ता शांत हो गया। पांडव और अन्य लोग यह देखकर आश्चर्यचकित हो गए कि एकलव्य ने इतनी दक्षता दिखाई।

महाभारत में एकलव्य को ‘वनवासी’ कहा गया है और उसकी स्थिति को ‘निषाद पुत्र’ या ‘व्याध पुत्र’ के रूप में वर्णित किया गया है, अर्थात वह एक शिकारी का बेटा था। एकलव्य ने स्वयं को द्रोणाचार्य का शिष्य बताया और द्रोणाचार्य ने उसे गुरु-दक्षिणा के रूप में दाहिने हाथ का अंगूठा मांगा। एकलव्य ने बिना किसी विरोध के अपनी प्रतिज्ञा के अनुसार अपना अंगूठा काट कर दे दिया। इसके बाद भी, वह अपनी बाकी उंगलियों से बाण चलाने लगे, लेकिन उनकी धनुर्विद्या में पूर्व जैसी तीक्ष्णता नहीं रही।

महाभारत के अनुसार, द्रोणाचार्य ने अपनी योजना को सफल मानते हुए कहा कि अर्जुन को कोई नहीं हरा पाएगा। क्या एकलव्य वास्तव में गरीब था? नहीं, एकलव्य के पिता हिरण्यधनु निषादराज थे, जिनका अपना राज्य था और जिनकी जरासंध के साथ संधि थी। द्रोणाचार्य केवल कौरव-पांडवों के गुरु नहीं थे, बल्कि हस्तिनापुर के रणनीतिकारों और सेनापतियों में से एक थे। हस्तिनापुर में एक गरीब ब्राह्मण की स्थिति को सुधारने के लिए भीष्म पितामह ने शरण दी थी।

द्रोणाचार्य जहाँ का रोटी खाते थे, उस राज्य के प्रति निभाई वफादारी

ऐसे में, द्रोणाचार्य ने हस्तिनापुर के प्रति अपनी वफादारी निभाते हुए यह निर्णय लिया। उनकी भूमिका केवल अर्जुन के लिए नहीं थी, बल्कि वह हस्तिनापुर के हितों की रक्षा करने के प्रति भी प्रतिबद्ध थे। युद्ध में भावनाओं के लिए बहुत कम जगह होती है, और उनके निर्णय का उद्देश्य हस्तिनापुर के खिलाफ उभरते दुश्मनों को नष्ट करना था। जरासंध न केवल हस्तिनापुर का दुश्मन था, बल्कि श्रीकृष्ण का भी विरोधी था, जिसे भीम ने मल्लयुद्ध में हराया था। जरासंध के मित्र होने का मतलब था कि वह हस्तिनापुर के खिलाफ था।

द्रोणाचार्य ने इस निर्णय को इसलिए लिया ताकि वह हस्तिनापुर के प्रति अपनी वफादारी दिखा सकें। इस फैसले में जाति का कोई भूमिका नहीं थी, और यह पूरी तरह से उस समय की कूटनीति पर आधारित था। कुछ स्थानों पर यह भी उल्लेख मिलता है कि एकलव्य ने अंगूठे के बिना भी धनुष और तीर का संधान किया,

और यह तकनीक आज भी तीरंदाजों द्वारा अपनाई जाती है। खेल प्रतियोगिताओं में आमतौर पर अंगूठे का उपयोग नहीं किया जाता है, इसलिए एकलव्य को आधुनिक तीरंदाजी का जनक भी माना जा सकता है। इससे यह स्पष्ट होता है कि द्रोणाचार्य के मन में एकलव्य के प्रति सहानुभूति रही होगी, तभी उन्होंने केवल अंगूठा ही मांगा और छल से उसकी हत्या नहीं की।

यदुवंशियों का हत्यारा थे एकलव्य, जरासंध का अनुचर

एकलव्य ने जरासंध के समर्थक के रूप में मथुरा पर आक्रमण किया और कई यादव योद्धाओं को मार डाला। इस स्थिति में भगवान श्रीकृष्ण को अपनी प्रजा की सुरक्षा के लिए उसके साथ युद्ध करना पड़ा। पुराणों में उल्लेखित है कि कृष्ण और बलराम का जरासंध के साथ एक भयानक युद्ध हुआ था। युद्ध के दौरान एकलव्य गदा के प्रहार से अचेत हो गया था, लेकिन शकुनि के पुत्र उलूक ने उसे बचाया। इसके अलावा, एकलव्य ने जरासंध की सेना की मदद भी की थी।

जब जरासंध युद्ध में फँस गया था, तब एकलव्य ही था जिसने उसे रथ में डालकर युद्धभूमि से सुरक्षित निकाला। इस युद्ध में कृष्ण और बलराम की जीत हुई, लेकिन मथुरा की यादव सेना को भारी क्षति हुई। क्या आज के यादव, जो श्रीकृष्ण को अपना पूर्वज मानते हैं, यह स्वीकार करेंगे कि एकलव्य ने कई यादव योद्धाओं को मार डाला था? क्या राहुल गांधी इस पहलू का उल्लेख करेंगे?

राही मासूम रज़ा द्वारा लिखे गए महाभारत सीरियल को देखकर राय बनाना उचित नहीं है; इसके लिए पुस्तकों का अध्ययन करना चाहिए। कुछ स्रोतों के अनुसार, एकलव्य हिरण्यधनु का केवल दत्तक पुत्र था और श्रीकृष्ण का रिश्तेदार था, जिससे उसकी यदुवंशी होने की संभावना जताई जाती है। एकलव्य ने पौंड्रक के साथ मिलकर मथुरा पर आक्रमण किया था और श्रीकृष्ण जब ‘रणछोड़’ बने और एक पर्वत में छिप गए थे, तब आग लगाकर उन्हें मार डालने की साजिश में भी शामिल था। अंततः बलरामजी ने उसे पराजित किया और युद्ध में श्रीकृष्ण के हाथों उसका वध हुआ।

अपने बेटे तक को द्रोणाचार्य ने नहीं सिखाया ब्रह्मास्त्र

गुरु द्रोणाचार्य ने अपनी शिक्षा और मार्गदर्शन में न केवल अपने पुत्र अश्वत्थामा से समझौता नहीं किया, बल्कि उन्हें भी ब्रह्मास्त्र के संधान का ज्ञान दिया, संहार का नहीं। कर्ण, जो उनका शिष्य था, को भी ब्रह्मास्त्र मिलने की उम्मीद नहीं थी, और इसी कारण वह महेंद्र पर्वत पर परशुराम जी के पास गया। इससे स्पष्ट होता है कि द्रोणाचार्य की वफादारी राष्ट्र के प्रति थी; वह जातिवादी नहीं थे, बल्कि एक कुशल कूटनीतिज्ञ और रणनीतिकार थे, जिन्होंने राष्ट्र की सुरक्षा को प्राथमिकता दी।

द्रोणाचार्य ने अपने बेटे को भी कई रहस्यों से अवगत नहीं कराया, तो फिर एकलव्य का आगे बढ़ना उन्हें कैसे स्वीकार हो सकता था, क्योंकि वह हस्तिनापुर के लिए खतरा बन सकता था। अपने देश और गुरु के प्रति वफादार होने के नाते, द्रोणाचार्य ने सोचा कि उनकी विद्या का उपयोग उनके खिलाफ न हो, जो हस्तिनापुर के लिए अनैतिक होगा। जरासंध अधर्मी था और धर्मनिष्ठ राजाओं का शत्रु भी। उसने कई राजकुमारों को बंदी बना रखा था। द्रोणाचार्य ने बिना अंगूठे के धनुर्विद्या का प्रयोग सिखाया, जो आज भी प्रासंगिक है।

यह भी महत्वपूर्ण है कि अंगूठा कट जाने के बाद भी, एकलव्य ने मथुरा की सीमा पर हाहाकार मचा दिया था। उसने अपने राजा जरासंध के प्रति अपनी निष्ठा दिखाते हुए युद्ध किया। श्रीकृष्ण को यह भी ज्ञात था कि यदि एकलव्य महाभारत के युद्ध में शामिल हुआ तो कौरवों का पलड़ा भारी हो जाएगा। एकलव्य के बेटे ने महाभारत के युद्ध में कौरवों का साथ दिया और भीम के हाथों मारा गया। महाभारत के युद्ध में भीष्म और द्रोण जैसे योद्धा मारे गए, यह दर्शाता है कि अधर्म का साथ देने वाले को अंततः मृत्यु का सामना करना पड़ता है।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)

राहुल गांधी ने ‘महाभारत’ के संदर्भ में क्या कहा?

राहुल गांधी ने हाल ही में अमेरिका दौरे पर ‘महाभारत’ की स्क्रिप्ट को राही मासूम रजा की रचनात्मकता नहीं मानते हुए, एकलव्य के शोषण की घटना को लेकर टिप्पणी की। उन्होंने इसे भारत की वर्तमान स्थिति और हिंदू धर्म पर नकारात्मक प्रभाव डालने के प्रयास के रूप में प्रस्तुत किया।

एकलव्य की कहानी में क्या सच्चाई है?

महाभारत के अनुसार, एकलव्य धनुर्विद्या में माहिर था और उसने द्रोणाचार्य की प्रतिमा बनाकर उनकी पूजा की थी। द्रोणाचार्य ने एकलव्य से उसकी दाहिनी अंगूठा मांगी थी, जिससे उसकी धनुर्विद्या में कमी आ गई। यह घटना जातिवाद या शोषण का प्रमाण नहीं है, बल्कि उस समय की कूटनीति और रणनीतिक निर्णयों का हिस्सा थी।

यादवों की लाशें बिछाने की बात किस संदर्भ में है?

राहुल गांधी ने यादवों के प्रति एकलव्य की कथित हिंसा का उल्लेख किया था। महाभारत में, एकलव्य ने जरासंध की ओर से मथुरा पर आक्रमण किया था, जिससे यादव योद्धाओं की मृत्यु हुई। यह घटना महाभारत के युद्ध की जटिलताओं का हिस्सा है और इसे ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में समझना आवश्यक है।

क्या राहुल गांधी की टिप्पणियाँ भारतीय इतिहास की सच्चाई को विकृत करती हैं?

राहुल गांधी की टिप्पणियाँ भारतीय इतिहास के संदर्भ में ऐतिहासिक तथ्यों को अपने तरीके से प्रस्तुत करती हैं। महाभारत के विभिन्न पात्रों और घटनाओं का अध्ययन करते समय मूल स्रोतों और ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य को ध्यान में रखना महत्वपूर्ण है।

क्या ‘महाभारत’ की कथा में द्रोणाचार्य का निर्णय जातिवाद पर आधारित था?

द्रोणाचार्य का निर्णय एकलव्य से अंगूठा मांगने का ऐतिहासिक और रणनीतिक कारण था, जो उस समय की कूटनीति और युद्ध नीति का हिस्सा था। इसमें जातिवाद का कोई स्पष्ट संकेत नहीं है, बल्कि यह हस्तिनापुर के सामरिक हितों की रक्षा के लिए लिया गया निर्णय था।

क्या एकलव्य के बारे में अधिक जानकारी के लिए क्या अध्ययन किया जाना चाहिए?

एकलव्य और महाभारत के पात्रों के बारे में सही जानकारी प्राप्त करने के लिए महाभारत के मूल ग्रंथों और अन्य ऐतिहासिक संदर्भों का अध्ययन करना चाहिए। राही मासूम रजा की स्क्रिप्ट या अन्य आधुनिक प्रस्तुतियों के बजाय प्राचीन ग्रंथों पर ध्यान केंद्रित करना उचित है।

निष्कर्ष

राहुल गांधी की टिप्पणियाँ और उनके द्वारा प्रस्तुत दृष्टिकोण भारतीय इतिहास और महाभारत की जटिलताओं को सरल रूप में प्रस्तुत करते हैं। एकलव्य की कहानी और द्रोणाचार्य के निर्णय को समझने के लिए यह आवश्यक है कि हम ऐतिहासिक संदर्भ और समय की कूटनीति को ध्यान में रखें। महाभारत की कथा में एकलव्य के संघर्ष और द्रोणाचार्य के निर्णय की जड़ों को समझना जातिवाद या शोषण की बजाय उस समय की रणनीति और युद्ध नीति का हिस्सा है।

राहुल गांधी की टिप्पणियाँ भारतीय समाज और धर्म पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकती हैं, लेकिन यह महत्वपूर्ण है कि हम ऐतिहासिक तथ्यों और संदर्भों की गहराई से जांच करें। ‘महाभारत’ और इसके पात्रों की वास्तविकता को समझने के लिए हमें प्राचीन ग्रंथों और ऐतिहासिक प्रमाणों का अध्ययन करना चाहिए, न कि केवल आधुनिक व्याख्याओं या मीडिया प्रस्तुतियों पर निर्भर रहना चाहिए। इतिहास की सच्चाई को समझना और उसके विभिन्न पहलुओं को स्पष्ट रूप से जानना समाज को अधिक सटीक और सुसंगत दृष्टिकोण प्रदान कर सकता है।

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