तारीख: 4 अक्टूबर 2023
दिल्ली के राउज एवेन्यू कोर्ट में इस दिन बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव, उनकी पत्नी और पूर्वरामरतिया मुख्यमंत्री राबड़ी देवी, उनके उपमुख्यमंत्री बेटे तेजस्वी यादव, और सांसद बिटिया मीसा भारती नजर आए। मामला जमीन के बदले रेलवे में नौकरी देने का था। कोर्ट ने सभी को जमानत दे दी, जिससे मीडिया में ‘बड़ी राहत’ की खबरें चलने लगीं।
पटना में बवाल
लेकिन इस खुशी के माहौल में एक और खबर आई। पटना से संवाददाता पलटू चच्चा ने बताया कि राबड़ी देवी के आवास, 10 सर्कुलर रोड, पर बड़ा बवाल मचा हुआ है। बिहार पुलिस और सैप के जवान फेल हो चुके हैं, और केंद्रीय बलों की तैनाती की गुहार लगाई जा रही है।
रामरतिया का विरोध
इस बवाल का नेतृत्व रामरतिया कर रही हैं, जो उस भैंस के नाम से मशहूर हैं, जिसे लालू दिल्ली जाने के बाद अपने खटाल में छोड़ आए थे। दिल्ली में उनके मित्र ने जातीय जनगणना के आंकड़े गुपचुप तरीके से रामरतिया के कान में फूँक दिए। इससे रामरतिया भड़क गईं और उन्होंने ऐलान किया कि अब ‘जिसकी जितनी संख्या भारी, उसकी उतनी भागीदारी’ पर ही विश्वास करेगी।
रामरतिया ने गणना की और पाया कि उनके पास लालू-राबड़ी से अधिक बाल-बुतरू हैं। उन्होंने महसूस किया कि उनका ही दूध पिला-पिलाकर राबड़ी ने अपना बेटा थोप दिया है। इस पर उन्होंने पूरे आंकड़ों के साथ 10 सर्कुलर रोड में धरना दे दिया। मनोज झा भी रामरतिया को मनाने के लिए भेजे गए, लेकिन वह मनाने से इंकार कर दीं।
समर्थन और विरोध
रामरतिया के समर्थन में बुधनी गाय भी पहुँची, जो अपनी जनगणना में संख्या की अनदेखी से नाराज थी। जुम्मन बकरा भी अपनी स्थिति से परेशान था और वह 18 प्रतिशत होने के बावजूद 14 प्रतिशत से मिले घावों को उजागर कर रहा था। उसकी दाढ़ी को सिद्दीकी मियाँ ने सहलाने का प्रयास किया, लेकिन जुम्मन ने इसे मना कर दिया और अब अपने गंगा-जमुनी समीकरण को बनाने की बात की।
राजद में बदलाव
10 सर्कुलर रोड में बवाल की खबर पटना में तेजी से फैल गई। पटना के 1 अणे मार्ग पर आपात बैठक हुई, जिसमें तेजस्वी यादव के नेतृत्व में वार्ता की गई। घंटों की बातचीत के बाद तय हुआ कि अब राजद का नेता राबड़ी नहीं, बल्कि रामरतिया का बेटा होगा। बाबू जगदानंद की जगह जुम्मन का बिरादर होगा।
सहमति बनते ही पटना में तेजस्वी यादव के आवास से लेकर सिंगापुर में रोहिणी दीदी की कोठी तक जश्न मनाया गया। जातीय जनगणना से रामरतिया ने एक झटके में जो मलाई छीन ली, उसे लेकर भाई-बहन खुशी से झूम उठे।
सुशासन बाबू की चिंता
अब सुशासन बाबू टेंशन में हैं। अगर वे 14 प्रतिशत वाले रामरतिया-बुधनी-जुम्मन की तिकड़ी से मलाई नहीं बचा सके, तो 2.87 प्रतिशत से वे कौन सा चमत्कार करेंगे!
अक्सर पूछे जाने वाले सवाल (FAQs)
“जिसकी जितनी संख्या भारी, उसकी उतनी भागीदारी” का मतलब क्या है?
यह वाक्यांश समाज में उन लोगों को अधिक भागीदारी देने की अवधारणा को दर्शाता है जिनकी संख्या अधिक है। इसका अर्थ है कि जिनके पास अधिक संख्या या समर्थन है, उन्हें उतनी ही अधिक भागीदारी मिलनी चाहिए।
राजद का नया नेता कौन बनेगा?
हाल ही में हुए घटनाक्रम के अनुसार, राजद का नया नेता राबड़ी देवी के स्थान पर अब रामरतिया का बेटा होगा। यह निर्णय हाल के बवाल और गणना के आंकड़ों के आधार पर लिया गया है।
रामरतिया कौन हैं और उनका विवाद क्या है?
रामरतिया एक प्रमुख नेता हैं, जिनका विवाद जातीय जनगणना के आंकड़ों को लेकर है। उनके अनुसार, उनके परिवार की संख्या अधिक है और इस आधार पर उन्हें अधिक भागीदारी मिलनी चाहिए। इस मुद्दे ने 10 सर्कुलर रोड पर बवाल मचाया है।
इस विवाद में कौन-कौन शामिल हैं?
इस विवाद में बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव, उनकी पत्नी राबड़ी देवी, उनके उपमुख्यमंत्री बेटे तेजस्वी यादव, सांसद मीसा भारती, और रामरतिया शामिल हैं। इसके अलावा, बुधनी गाय और जुम्मन बकरा भी इस विवाद में शामिल हैं।
पटना में हुए बवाल का क्या कारण था?
पटना में बवाल का कारण जातीय जनगणना के आंकड़ों पर आधारित रामरतिया का विरोध था। रामरतिया ने यह आरोप लगाया कि उन्हें उनके परिवार की वास्तविक संख्या के अनुसार भागीदारी नहीं मिल रही है और इसी कारण उन्होंने धरना दिया।
तेजस्वी यादव का इस विवाद में क्या रोल है?
तेजस्वी यादव ने इस विवाद को सुलझाने के लिए वार्ता की और इस दौरान यह तय हुआ कि अब राजद का नेतृत्व राबड़ी देवी के स्थान पर रामरतिया का बेटा करेगा। तेजस्वी यादव के नेतृत्व में यह निर्णय लिया गया।
निष्कर्ष
हाल के घटनाक्रमों के अनुसार, बिहार की राजनीति में महत्वपूर्ण बदलाव आ रहे हैं। जातीय जनगणना के आंकड़ों को लेकर रामरतिया के नेतृत्व में उठे विवाद ने राजद के आंतरिक संघर्ष को उजागर किया है। राबड़ी देवी के स्थान पर अब रामरतिया का बेटा पार्टी का नेता बनेगा, जो कि संख्या की अधिकता के आधार पर लिया गया निर्णय है।
पटना में हुए बवाल और गणना के आंकड़ों को लेकर उठे विरोध ने इस मुद्दे को और भी जटिल बना दिया है। तेजस्वी यादव के नेतृत्व में हुए समझौते के बाद, पार्टी के अंदर एक नई दिशा की ओर इशारा किया गया है। जश्न की धूम और राजनीतिक रणनीतियों के बीच, सुशासन बाबू की चुनौतियाँ भी बढ़ गई हैं।