भजन गायक कन्हैया मित्तल, जिन्होंने “जो राम को लाए हैं” गाकर सुर्खियाँ बटोरी थीं, ने 48 घंटों के भीतर कॉन्ग्रेस पार्टी ज्वाइन करने के अपने फैसले को पलट दिया है। मंगलवार (10 सितंबर 2024) को उन्होंने एक
वीडियो जारी कर इसकी घोषणा की। अब कन्हैया ने “सनातनियों की सुनेंगे, सनातनियों को चुनेंगे” का नारा दिया है। साथ ही, उन्होंने 2 दिन पहले दिए गए अपने बयान के लिए माफी भी मांगी, जिसमें उन्होंने कॉन्ग्रेस ज्वाइन करने की बात कही थी।
वीडियो में जय श्री राम के जयकारे के साथ शुरुआत करते हुए, कन्हैया मित्तल ने कहा कि पिछले 2 दिनों में उन्हें यह एहसास हुआ कि भाजपा के शीर्ष नेतृत्व और सनातनी समुदाय के भाई-बहनों से उन्हें बहुत
स्नेह और समर्थन मिला है। उन्होंने कहा कि उनके इस फैसले से कई लोग परेशान हुए और इसके लिए उन्होंने माफी मांगी। कन्हैया ने कहा, “मैंने जो अपने मन की बात कही थी कि मैं कॉन्ग्रेस में शामिल होने वाला हूँ, वह मैं वापस लेता हूँ क्योंकि मैं नहीं चाहता कि सनातनी भाइयों का मुझ पर से विश्वास टूटे।”
उन्होंने आगे कहा, “अगर मैं टूटूँगा, तो और भी कई टूटेंगे। हम सब मिलकर राम के थे और राम के रहेंगे।” कन्हैया ने एक बार फिर लोगों से माफी मांगी और कहा कि उनका बयान एक गलती थी।
उन्होंने लोगों को इस गलती का एहसास कराने के लिए धन्यवाद दिया और उम्मीद जताई कि सब उनसे इसी तरह जुड़े रहेंगे। वीडियो का अंत करते हुए उन्होंने “सनातनियों की सुनेंगे, सनातनियों को चुनेंगे” का कैप्शन लिखा।
पहले किया था कॉन्ग्रेस में शामिल होने का एलान
8 सितंबर, 2024 को कन्हैया मित्तल ने एक वीडियो जारी कर कॉन्ग्रेस पार्टी ज्वाइन करने के संकेत दिए थे। यह वीडियो राजस्थान के मेहंदीपुर बालाजी से बनाया गया था, जिसमें कन्हैया ने
अपने एक दोस्त से हुई बातचीत का जिक्र करते हुए कहा था कि सनातन की बात करने वाला सिर्फ एक ही दल न हो, बल्कि यह आवाज सभी पार्टियों से उठनी चाहिए। उस समय उन्होंने स्पष्ट किया था कि उनका भाजपा से कोई मतभेद नहीं है और उन्होंने यह फैसला टिकट न मिलने की वजह से नहीं लिया है।
कन्हैया मित्तल ने उस वक्त भाजपा से अपने संबंधों को मंचों पर गाने तक सीमित बताया था। खुद को योगी आदित्यनाथ का शिष्य बताते हुए, उन्होंने कॉन्ग्रेस ज्वाइन करने के पीछे की मंशा को जनसेवा से जोड़ा। साथ ही, उन्होंने कॉन्ग्रेस
पार्टी में मौजूद सनातनियों को अलग नजर से न देखने की अपील की थी, यह कहते हुए कि वह नहीं चाहते कि सनातन की बात करने वाली सिर्फ एक ही पार्टी हो। उस दौरान कन्हैया ने राहुल गांधी और प्रियंका गांधी के अयोध्या न जाने के निर्णय का भी बचाव किया था, और उनके समर्थन में बात की थी।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)
कन्हैया मित्तल ने कॉन्ग्रेस ज्वाइन करने का फैसला क्यों किया था?
कन्हैया मित्तल ने 8 सितंबर, 2024 को एक वीडियो के माध्यम से कॉन्ग्रेस ज्वाइन करने के संकेत दिए थे। उन्होंने कहा था कि वह चाहते हैं कि सनातन धर्म की आवाज सभी पार्टियों से उठे, न कि केवल एक पार्टी से। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया था कि उनका भाजपा से कोई मतभेद नहीं है और यह फैसला टिकट न मिलने की वजह से नहीं था।
कन्हैया मित्तल ने अपना फैसला क्यों बदला?
48 घंटों के भीतर, कन्हैया मित्तल ने कॉन्ग्रेस में शामिल होने का फैसला बदल दिया। उन्होंने महसूस किया कि भाजपा और सनातनी समुदाय के लोगों का उन्हें बहुत स्नेह और समर्थन मिला है। उन्होंने कहा कि वह नहीं चाहते कि सनातनी भाइयों का उन पर से विश्वास टूटे।
क्या कन्हैया मित्तल ने माफी मांगी?
हां, कन्हैया मित्तल ने अपने कॉन्ग्रेस ज्वाइन करने के बयान के लिए माफी मांगी। उन्होंने कहा कि उनके बयान से लोगों को परेशानी हुई, और इसके लिए उन्होंने खेद जताया।
कन्हैया मित्तल ने किस नारे का समर्थन किया?
अपने यू-टर्न के बाद, कन्हैया मित्तल ने “सनातनियों की बात मानेंगे, और उन्हीं को चुनेंगे” का नारा दिया, जो उनके सनातनी समर्थकों के प्रति उनकी प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
क्या कन्हैया मित्तल का भाजपा से संबंध समाप्त हो गया था?
नहीं, कन्हैया मित्तल ने पहले ही स्पष्ट किया था कि उनका भाजपा से कोई मतभेद नहीं है। उन्होंने कहा था कि भाजपा के साथ उनका रिश्ता मंचों तक सीमित है, लेकिन उनका सनातन धर्म के प्रति निष्ठा हमेशा रही है।
कन्हैया मित्तल ने राहुल गांधी और प्रियंका गांधी के अयोध्या न जाने का बचाव क्यों किया?
कन्हैया मित्तल ने कहा था कि किसी भी पार्टी में सनातनियों को अलग नजर से नहीं देखा जाना चाहिए। उन्होंने राहुल गांधी और प्रियंका गांधी के अयोध्या न जाने के निर्णय का बचाव किया था, यह कहते हुए कि इसका राजनीति से कोई संबंध नहीं है।
निष्कर्ष
कन्हैया मित्तल का कॉन्ग्रेस ज्वाइन करने का फैसला और फिर उसे महज 48 घंटों के भीतर पलटना उनके जीवन और करियर में एक महत्वपूर्ण मोड़ है। पहले कॉन्ग्रेस में शामिल होने के पीछे जनसेवा और सनातन धर्म की व्यापकता की मंशा थी, लेकिन जनता और सनातनियों के साथ उनके गहरे संबंधों
ने उन्हें अपना फैसला बदलने पर मजबूर किया। मित्तल ने अपने बयान के लिए माफी मांगते हुए “सनातनियों की बात मानेंगे, और उन्हीं को चुनेंगे” का नया नारा दिया, जिससे स्पष्ट होता है कि वह अपनी धार्मिक निष्ठा और समर्थकों के प्रति वफादार रहना चाहते हैं। यह घटनाक्रम बताता है कि धर्म और राजनीति के बीच संतुलन बनाना कितना जटिल हो सकता है, और किसी भी निर्णय का व्यापक प्रभाव कैसे पड़ता है।